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Dhanurveda in Hindi

धनुर्वेद की जानकारी हिंदी में ।

      विश्व साहित्य में वैदिक साहित्य प्राचीनतम साहित्य माना जाता है। हम सभी इस बात से अवगत है । वैदिक साहित्य चार भागों में विभाजित है। संहिताभाग, ब्राह्मणभाग,आरण्यकभाग एवं उपनिषदभाग । वेद सभी धर्मों का मूल है । भगवान मनु ने भी कहा है- 'वेदोऽखिलोधर्ममूलम् । वेद सभी धर्मों का मूल है इसमें कोई संदेह नहीं है । वेद संहिता में ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद एवं अथर्ववेद का समावेश होता है। इन चारों वेदों के अलग-अलग उपवेद भी है । जैसे आयुर्वेद, धनुर्वेद, अंगिरा वेद इत्यादि, इन उपवेदों में पहला आयुर्वेद है। दूसरा शिल्प वेद है। तीसरा गंधर्व वेद और चौथा धनुर्वेद है। इस धनुर्वेद में धनुर्विद्या का सारा रहस्य मौजूद है। इनमें से यजुर्वेद संहिता का उपवेद धनुर्वेद है। धनुर्वेद में अस्त्र, शस्त्र, ब्यूह रचना एवं युद्ध संबंधी वर्णन किया गया है। "जिसे फेंक कर श़त्रु का संहार किया जाए उसे अस्त्र कहते हैं"- जैसे तीर, गोली आदि; ।

"जिसे हाथ में लेकर लड़ते हैं वह शस्त्र कहलाता है जैसे तलवार, भाला, गदा, छुरी आदि।"

प्राचीन काल में सेना की मोर्चाबंदी कि सात प्रकार की व्यूह रचना होती थी, धनुष, चक्र, तलवार, भाला, छुरी, गदा और नियुद्ध इन सात प्रकार के युद्धों का वर्णन धनुर्वेद में किया है। जब योद्धा के सभी शस्त्र-अस्त्र समाप्त हो जाते हैं , उस समय हाथ, पैरों द्वारा प्रहार करना "नियुद्ध" कहलाता है।

आदि कवि वाल्मीकि रचित रामायण में रावण एवं सुग्रीव के बाहुयुद्ध का वर्णन किया है। वेदव्यास प्रणित महाभारत में भीम ने जरासन्ध और कृष्ण-बलराम ने कंस का वध नियुद्ध से ही किया था। वर्तमान का जूडो, कराटे, कुंगफू भी नियुद्ध की श्रेणी में आता है। इस युद्ध कला को भारत के बौद्ध भिक्षुओं ने चीन में प्रचारित किया। अस्त्रों के दो भेद हैं "यन्त्रमुक्त और मन्त्रमुक्त'। जिसमें शक्ति का वर्णन करके तीर, गोली, गोले फेंके जाएं, उसे यन्त्र मुक्त कहते हैं । और मन्त्र गुप्त रहस्य को कहते हैं जैसे वर्तमान समय में गाइडेड मिसाइल, उपग्रह आदि का संचालन किया जाता है इसी का नाम मन्त्र मुक्त है। युद्ध के क्षेत्र में सोना की मोर्चाबन्दी किस प्रकार की जाए इसका वर्णन व्यूह रचना में किया है। रामायण, महाभारत और कौटिल्य अर्थशास्त्र तथा अग्नि पुराण में व्यूहों का विस्तार से वर्णन किया गया है।  वर्तमान समय में युद्ध का स्वरूप बदल गया है। जो धनुर्धर शास्त्रोक्त विधि से बाण का प्रयोग करता है, वह बड़ा यशस्वी होता है। महाभारत में भिष्म ने छह हाथ लंबे धनुष का प्रयोग किया था। कालीदास रचित रघुवंश में राम व लक्ष्मण के धनुषों के टंकार का वर्णन व अभिज्ञान शाकुंतलम् में दुष्यंत के युद्धकौशल का वर्णन सिद्ध करता है कि कालिदास को धनुर्विद्या की अच्छी जानकारी थी। इससे अतिरिक्त धनुर्वेद में धनुर्विद्या के विषय में बहुत ही  रहस्यपूर्ण ज्ञान दिया गया है। इस उपवेद का अध्ययन करना अत्यंत लाभ कारक होगा ।

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