आदर्श शिक्षक के सात गुण
विद्वत्त्वं दक्षता शीलं सङ्कान्तिरनुशीलनम् ।
शिक्षकस्य गुणाः सप्त सचेतस्त्वं प्रसन्नता ॥
यह संस्कृत श्लोक शिक्षक के आदर्श स्वरूप को अत्यंत सरल परंतु गहनता से प्रस्तुत करता है। एक शिक्षक केवल पढ़ाने वाला व्यक्ति नहीं है, बल्कि समाज के निर्माण का शिल्पकार होता है। आइए जानते हैं कि इन सात गुणों का शिक्षक के जीवन में क्या महत्व है –
१. विद्वत्ता (गहन ज्ञान)
शिक्षक के पास विषय का गहन और प्रामाणिक ज्ञान होना चाहिए। विद्वत्ता ही वह आधार है, जिस पर विद्यार्थी विश्वास करता है।
२. दक्षता (कुशलता)
सिर्फ ज्ञान होना ही पर्याप्त नहीं, बल्कि उसे प्रस्तुत करने और समझाने की दक्षता भी उतनी ही आवश्यक है। दक्षता शिक्षक को श्रेष्ठ बनाती है।
३. शील (सदाचार)
शिक्षक का आचरण ही विद्यार्थियों के लिए सबसे बड़ा पाठ होता है। शील और सदाचार के बिना शिक्षा अधूरी है।
४. सङ्कान्ति (ज्ञान का संचार)
ज्ञान का वास्तविक मूल्य तभी है जब उसे दूसरों तक पहुँचाया जाए। शिक्षक का मुख्य दायित्व ही है – ज्ञान को विद्यार्थियों तक स्पष्ट और सरल रूप में पहुँचाना।
५. अनुशीलन (निरंतर अध्ययन)
आदर्श शिक्षक स्वयं भी सदा विद्यार्थी रहता है। जो निरंतर अध्ययन और शोध करता है, वही अपने छात्रों को समयानुकूल शिक्षा दे सकता है।
६. सचेतस्त्वम् (सजगता)
शिक्षक को केवल पुस्तकीय ज्ञान नहीं, बल्कि समाज, संस्कृति और बदलते परिवेश के प्रति भी सजग रहना चाहिए। उसकी सजगता ही विद्यार्थियों को वास्तविक जीवन के लिए तैयार करती है।
७. प्रसन्नता (आनंदमय स्वभाव)
प्रसन्न और सकारात्मक स्वभाव वाला शिक्षक ही विद्यार्थियों के मन में सीखने की इच्छा जगा सकता है। प्रसन्नता शिक्षा को सरल और आनंददायी बनाती है।
निष्कर्ष
इन सात गुणों से संपन्न शिक्षक ही सच्चे अर्थों में आदर्श कहलाता है। ऐसे शिक्षक केवल ज्ञान ही नहीं देते, बल्कि जीवन जीने की कला भी सिखाते हैं।
🙏 इस शिक्षक दिवस पर हम सबको अपने-अपने जीवन के उन शिक्षकों को नमन करना चाहिए, जिनकी विद्वत्ता, दक्षता और सद्गुणों ने हमें सही राह दिखाई है।