वैदिक साहित्य का परिचय
नमस्ते, आज मैं आपको वैदिक साहित्य के विषय
में सामान्य जानकारी प्रदान करने जा रहा हूं । यहां पर वेद शब्द का अर्थ,
वेद की
परिभाषा,
सृष्टि विज्ञान एवं वेद, वेदों का महत्व इत्यादि विषयों की हम
चर्चा करेंगे ।
आशा रखता हूं कि आपको यह जानकारी अत्यंत उपयोगी एवं लाभदायक होगी ।
विषयसूची |
वेद शब्द का अर्थ : (Meaning of the Veda) वेद की परिभाषाएँ : (Definition of veda) |
वेद शब्द का अर्थ : (Meaning of the Veda)
विद्'- धातु
से भाव कर्म एवं करण अर्थ में घञ्-प्रत्यय करने पर ज्ञान, वेद नामक यज्ञीय पदार्थ एवं ऋगादि
चारों प्रकार के वेद का वाचक संस्कृत में पुल्लिङ्ग शब्द "वेदः' निष्पन्न होता है। ज्ञान एवं ऋगादि
चारों वेदों के अपौरुषेय- शब्दराशि के बीच कोई तत्त्वात्मक भेद न होने से इन दोनों
का वाचक वेद शब्द आधुदात्त माना जाता है, जबकि
अन्तोदात्त वेद शब्द कुशमुष्टि का वाचक माना जाता है। अलौकिक' ज्ञान का साधन होने के कारण इस वेद
शब्द को योगरूढ़ माना गया है। अतः यह निश्चित हो जाता है कि प्रकृतस्थल में
वेद-शब्द ऋगादि के अर्थ में ही स्वीकार्य है।
वेद की परिभाषाएँ : (Definition of veda)
उपर्युक्त व्युत्पत्ति के आलोक में
तथा इन निम्नलिखित व्युत्पत्तियों का आधुनिक दृष्टि से परिशीलन कर के पूर्व एवं
पाश्चात्य के प्राचीन एवं नवीन या आधुनिक विद्वानों ने वेद को विविधरूपों में
परिभाषित कर उसके बहु आयामी एवं वैज्ञानिक स्वरूप को दर्शाने का प्रयत्न किया है।
अतः इनके वेद लक्षणों में वैदिकसाहित्य की व्यापकता के अनेक आयाम दृष्टिगोचर होते
हैं न कि विरोध प्राचीन भारतीय वेद-मनीषियों की दृष्टि में वेद स्वयं भगवान हैं ।
अर्थात् वेदशब्दराशि ब्रह्म का
शाब्दिक स्वरूप है। इसी से जगत् की सृष्टि होती है। आचार्य भतृहरि ने भी ‘शब्द को ब्रह्म तथा जगत् को अर्थ माना
है‘ । इसके अतिरिक्त
मन्त्र एवं ब्राह्मण भाग के वेदत्व के प्रसंग में भी विद्वानों के दो समूह बन जाते
हैं।
इनमें एक सम्प्रदाय तो यह
मानता है कि केवल मन्त्र भाग ही अपौरुषेय शब्द राशि है, जबकि ब्राह्मण भाग इन मन्त्रों
का व्याख्यान होने के कारण अपौरुषेय नहीं है । अन्य सनातन वैदिक धर्मावलम्बी मंत्र एवं
ब्राह्मण भाग को समेकित रूप से अपौरुषेय वाक्य मान कर इन दोनों की ही नित्यता को
स्वीकार करता है। इस प्रकार बौद्धिक ऊँचाई एवं रुचि के अनुसार इस विपुल कलेवर वाले
वैदिक साहित्य के विषय में विभिन्न प्रकार के विद्वानों के नानाविध लक्षण वैदिक
साहित्य के ग्रन्थों में उपलब्ध होते हैं। जो कुछ भी हो, वैदिक साहित्य की प्राचीनता को
एवं इसकी आध्यात्मिक, आधिदैविक
एवं आधिभौतिक महत्ता को विश्व के लगभग सभी वैदिक समीक्षकों ने अङ्कीकार किया है।
प्राचीन भारतीय परम्परा वेद को ‘नित्य
अपौरुषेय ब्रह्म का निःश्वास एवं स्वयं प्रादुर्भूत मानती है ।‘
सृष्टि विज्ञान एवं वेद (Creation Science and Vedas)
अध्यात्मविज्ञान
में सृष्टि विज्ञान एक ऐसी कड़ी है जो आधुनिक सृष्टि विज्ञान को आगे सोचने के लिए
ऊर्जा प्रदान करती है। इसी कड़ी का काम ऋग्वेद का नासदीय सूक्त सहित अनेक सृष्टि
विज्ञान सम्बद्धसूक्त एवं मन्त्र करते हैं ।
आधुनिक विज्ञान जहाँ सृष्टि के मूल में चैतन्यांश को लेकर दुविधा में है, वहीं वैदिक साहित्य प्रजापति
को एक चैतन्य के रूप में स्पष्ट रूप से उल्लिखित करता है । इस प्रकार सृष्टिप्रक्रिया को समझने के
लिए वैदिक ऋषियों की अनुभूति जो वैदिक सूक्तों एवं मन्त्रों में अभिव्यक्त है, को समझने की दृष्टि से वेदों
का महत्व है ।
विष्णु, प्रजापति एवं रुद्र देवों से
सम्बद्ध सूक्तों के अध्ययन से तथा आरण्यक एवं उपनिषदों के उपदेशों के मनन एवं
चिन्तन से संसार की सर्जना, विकास
एवं जन्म की उत्तर गति का भलीभाँति ज्ञान प्राप्त किया जा सकता है। भगवान श्री
कृष्ण ने गीता में “त्रैगुण्यविषयावेदानिस्त्रै गुण्यो भवार्जुन" - इस पंक्ति
के माध्यम से वेद की सृष्टि एवं सृष्टिसंकोच के रहस्य को स्पष्ट रूप से समझा दिया
गया है। यही माया के त्रिगुण वेदान्त में अज्ञान के स्वरूप को दर्शाते हैं एवं उस
अज्ञानोपहित चैतन्य से सृष्टि की प्रक्रिया शुरु होती है। इधर सांख्य के पुरुष को
तथा न्यायवैशेषिकों के सेश्वर अनीश्वर वाद को भी वैदिक सम्बल प्राप्त है। अतः
सृष्टि-विज्ञान के सम्यक् अध्ययन एवं तत्सम्बद्ध शोधकार्य के लिए वैदिक साहित्य का
गहन अध्ययन आवश्यक है
।
वेदों का
महत्त्व : (Importance of Vedas)
सिद्ध
उपयोगिता का दूसरा नाम ही महत्ता या महत्व है। वेद विश्व के समस्त धर्मों, सम्प्रदायों, संस्कृतियों एवं मान्यताओं को
समझने का सरल साधन एवं विश्वव्यवस्था की एक संस्था भी है। "अग्निमीळे
पुरोहितम्" यह ऋग्वैदिक संहिता के प्रथम मंत्र का मन्त्रांश हैं, जो विश्व के धर्मों में अग्नि
एवं कर्म काण्ड की महत्ता की सूचना देता है।
विश्व
के धर्मों में प्रकृति पूजा के आलोक में इन दो पदार्थों को किसी न किसी रूप में
अवश्य ही अपनाया गया है। विश्वसभ्यता, विश्वसंस्कृति, विश्व के मानव इतिहास एवं
विश्व में मानव जीवन मूल्य की प्रारंभिक स्थिति को समझने के लिए वैदिक साहित्य का
योगदान सर्वमान्य है। विशेष रूप से भारतीय संस्कृति,
सभ्यता
एवं भारतीय धार्मिक सम्प्रदायों के बीच सामञ्जस्य एवं आध्यात्मिक एकता के सूत्र के अनुसार एक विकास की धारा है ।
इस प्रकार तुलनात्मक भाषाविज्ञान, धर्म विज्ञान, भौतिक विज्ञान इत्यादि के अध्ययन के लिए वैदिक साहित्य का अध्ययन परमावश्यक है ।