हिन्दी से संस्कृत अनुवाद
नमस्कार मित्रों यहां पर हिंदी वाक्यों का संस्कृत अनुवाद है। जो संस्कृत संभाषण के लिए आपको उपयोगी होगा । और आप रोज-बरोज के व्यवहार में जो शब्दो का वाक्यों का प्रयोग होता है, उन शब्दो का वाक्यों को यहां पर से पढ कर, देखकर समझ सकते हो और अपने व्यक्तिगत जीवन में व्यवहार के रूप में उनका प्रयोग करने मे आपको सहायता मिलेगी ।
""विद्यालय में लड़के और लड़कियाँ
है। विद्यालये बालकाः बालिकाश्च वर्तन्ते। मैं कंघे से बाल सँवारता हूँ। अहं कंकतेन केशप्रसाधनं करोमि। बालिका जा रही है। बालिका गच्छन् अस्ति। यह रमेश की पुस्तक है। इदं रमेशस्य पुस्तकम् अस्ति। बालक को लड्डू अच्छा लगता है। बालकाय मोदकं रोचते। मातापिता और गुरुजनों का सम्मान करना उचित है। पितरौ गुरुजनाश्च सम्माननीयाः। जो होना है सो हो, मैं उसके सामने नहीं झुकूँगा। यद्भावी तद् भवतु, नाहं तस्य पुरः शिरोऽवनमयिष्यामि। वह वानर वृक्ष से उतरकर नीचे बैठा है। वानरः वृक्षात् अवतीर्य्य नीचैः उपविष्टोऽस्ति। मेरी सब आशाओं पर पानी फिर गया। सर्वा ममाशा मोघाः सञ्जाताः। मैने सारी रात आँखों में काटी। पर्यङ्के निषण्णस्य ममाक्ष्णोः प्रभातमासीत्। गुरु से धर्म पूछता है। उपाध्यायं/गुरुं धर्मं पृच्छति। बकरी का दूध दुहता है। अजां दुग्धं दोग्धि। मन्दिर के चारों ओर भक्त है। मन्दिरं परितः भक्ताः सन्ति। इस आश्रम में ब्रह्मचारी, वानप्रस्थी और संन्यासी हैं। ब्रह्मचारिणः वानप्रस्थाः संन्यासिनश्च अस्मिन् आश्रमे सन्ति। नाई उस्तरे से बाल काटता है। नापितः क्षुरेण केशान् वपति। रंगरेज वस्त्रों को रंगता है। रज्जकः वस्त्राणि रञ्जयति। मन सत्य से शुद्ध होता है। मनः सत्येन शुध्यति। आकाश में पक्षी उड़ते हैं। वियति (आकाशे) पक्षिणः उड्डीयन्ते। उसकी मूट्ठी गर्म करो, फिर तुम्हारा काम हो जाएगा। उत्कोचं तस्मै देहि तेन तव कार्यं सेत्स्यति। कुम्भ पर्व में भारी जन सैलाब देखने योग्य है। कुम्भपर्वणि प्रचुरो जनसञ्चारः दर्शनीयः। विद्याविहीन मनुष्य और पशुओं में कोई भेद नहीं है। विद्याविहीनानां नराणां पशूनाञ्च कोऽपि भेदो नास्ति। उसकी ऐसी दशा देखकर मेरा जी भर आया। तस्य तथावस्थामवलोक्य करुणार्द्रचेता अभवम्। प्रभाकर आज मेरे घर आएगा। प्रभाकरः अद्य मम गृहमागमिष्यति। एक स्त्री जल के घड़े को लेकर पानी लेने जाती है। एका स्त्री जलकुम्भमादाय जलमानेतुं गच्छति। मैं आज नहीं पढ़ा, इसलिये मेरे पिता मुझ पर नाराज थे। अहमद्य नापठम्, अतः मम पिता मयि अप्रसन्नः आसीत्। मे घर जाकर पिता से पूछ कर आऊँगा। अहं गृहं गत्वा पितरं पृष्ट्वा आगमिष्यामि। व्यायाम से शरीर बलवान् हो जाता है। व्यायामेन शरीरं बलवद् भवति। उसके मूँह न लगना, वह बहुत चलता पुरजा है। तेन साकं नातिपरिचयः कार्यः कितवौऽसौ। मेरे पाँव में काँटा चुभ गया है, उसे सुई से निकाल दो। मम पादे कण्टको लग्नः, तं सूच्या समुद्धर। एक बार धर्म और सत्य में विवाद हुआ। एकदा धर्म्मसत्ययोः परस्परं विवादोऽभवत्। सूर्य की प्रखर किरणों से वृक्ष, लता सब सूख जाते हैं। सूर्यस्य तीक्ष्णकिरणैः वृक्षलताः शुष्काः भवन्ति। ईश्वर की कृपा से उसका शरीर नीरोग हो गया। ईश्वरस्य कृपया तस्य शरीरं नीरोगम् अभवत्। राम के साथ सीता वन जाती है। रामेण सह सीता वनं गच्छति। मुझे इस बात के सिर पैर का पता नहीं लगता। अस्याः वार्तायाः अन्तादी नावगच्छामि। सुबह उठकर पढ़ने बैठ जाओ। प्रातः उत्थाय अध्येतुम् उपविशः। पति के वियोग से वह सुखकर काँटा हो गयी है। पतिविप्रयोगेण सा तनुतां गता। चपलता न करो इससे तुम्हारा स्वभाव विगड़ जायेगा। मा चपलाय, विकरिष्यते ते शीलम्। घर के बाहर वृक्षः है। गृहात् बहिः वृक्षः अस्ति। शकुन्तला का पति दुष्यन्त था। शकुन्तलायाः पतिः दुष्यन्तः आसीत्। विष वृक्ष को भी पाल करके स्वयं काटना ठीक नहीं है। विषवृक्षोऽपि संवर्ध्य स्वयं छेत्तुमसाम्प्रतम्। अध्यापक की डाँट सुनकर वह लज्जा से सिर झुकाकर खड़ी हो गयी। अध्यापकस्य तर्जनं श्रुत्वा सा लज्जया शिरः अवनमय्य स्थितवती। अरे रक्षकों! आप जागरुकता से उद्यान की रक्षा करो। भोः रक्षकाः! भवन्तः जागरुकतया उद्यानं रक्षन्तु। इन दिनों वस्तुओं का मूल्य अधिक है। एषु दिनेषु वस्तूनां मूल्यम् अधिकम् अस्ति। आज सुबह कार्यक्रम का उद्घाटन हुआ। अद्य प्रातःकाले कार्यक्रमस्य उद्घाटनं जातम्। पुस्तक पढ़ने के लिए वह पुस्तकालय जाता है। पुस्तकं पठितुं सः पुस्तकालयं गच्छति। हस्तलिपि को साफ एवं शुद्ध बनाओ। हस्तलिपिं स्पष्टां शुद्धां च कुरु। पढ़ने के समय दूसरी ओर ध्यान मत दो।अध्ययनसमये अन्यत्र ध्यानं मा देहि। विद्यालय के सामने सुन्दर उद्यान है। विद्यालयस्य पुरतः सुन्दरम् उद्यानं वर्तते। सुनार सोने से आभूषण बनाता है। स्वर्णकारः स्वर्णेन आभूषणानि रचयति। लुहार लोहे से बर्तन बनाता है। लौहकारः लौहेन पात्राणि रचयति। ईश्वर तीनों लोकों में व्याप्त है। ईश्वरः त्रिलोकं व्याप्नोति। देश की उन्नति के लिए आयात और निर्यात आवश्यक है। देशस्योन्नत्यै आयातो निर्यातश्च आवश्यकौ स्तः। रिश्वत लेना और देना दोनों ही पाप है। उत्कोचस्य आदानं प्रदानं च द्वयमपि पापम् अस्ति। बुद्धि ही बल से श्रेष्ठ है। मतिरेव बलाद् गरीयसी। बुरों का साथ छोड़ और भलों की सङ्गति कर। त्यज दुर्जनसंसर्गं भज साधुसमागमम्। एक दिन महर्षि ने ध्यान के समय दूर जङ्गल में धधकती हुई आग को देखा। एकदा ध्यानमग्नोऽसौ ऋषिः दूरवर्तिनि वनप्रदेशे जाज्वल्यमानं दावानलं ददर्श। एक समय राजा दिलीप ने अश्वमेध यज्ञ करने के लिए एक घोड़ा छोड़ा। एकदा राजा दिलीपोऽश्वमेधयज्ञं कर्तुमश्वमेकं मुमोच। आप सभी हमारे साथ संस्कृत पढें। भवन्तः अपि अस्माभिः सह संस्कृतं पठन्तु। बालकों को मिठाई पसंद है। बालकेभ्यः मधुरं रोचते। बहन! आज आने में देर क्यों? भगिनि! अद्य आगमने किमर्थं विलम्बः। मित्र! कल मेरे घर आना। मित्र! श्वः मम गृहम् आगच्छतु। घर के दानों ओर वृक्ष है। गृहम् उभयतः वृक्षाः सन्ति। मैं साइकिल से पढ़ने के लिए पुस्तकालय जाता हूँ। अहं द्विचक्रिकया पठितुं पुस्तकालयं गच्छामि। विद्यालय जाने का यही समय है। विद्यालयं गन्तुम् अयमेव समयः। सूर्य निकल रहा है और अंधेरा दूर हो रहा है। भानुरुद्गच्छति तिमिरश्चापगच्छति। विवेक आज घर जायेगा। विवेकः अद्य गृहं गमिष्यसि । सदाचार से विश्वास बढता है। सदाचारेण विश्वासं वर्धते । वह क्यों लज्जित होता है? सः किमर्थम्लज्जते ? हम दोनों ने आज चलचित्र देखा। आवां अद्य चलचित्रम् अपश्याव। हम दोनों कक्षा में अपना पाठ पढ़ेंगे। आवां कक्षायाम् स्व पाठम पठिष्यावः । वह घर गई। सा गृहं अगच्छ्त्। सन्तोष उत्तम सुख है। संतोषः उत्तमं सुखः अस्ति । पेड़ से पत्ते गिरते है। वृक्षात् पत्राणि पतन्ति । मै वाराणसी जाऊंगा। अहं वाराणासीं गमिष्यामि । मुझे घर जाना चाहिये। अहं गृहं गच्छेयम् । यह राम की किताब है। इदं रामस्य पुस्तकम् अस्ति । हम सब पढ़ते हैं। वयं पठामः । सभी छात्र पत्र लिखेंगे।लिखिष्यन्ति । सर्वे छात्राः पत्रं मै विद्यालय जाऊंगा। अहं विद्यालयं गमिष्यामि । प्रयाग में गंगा यमुना का संगम है। प्रयागे गंगायमुनयोः संगमः अस्ति । हम सब भारत के नागरिक हैं। वयं भारतस्य नागरिकाः सन्ति । वाराणसी गंगा के पावन तट पर स्थित है। वाराणसी गंगायाः पावनतटे स्थितः अस्ति। वह आ गया। सः आगच्छ्त्। तुम पुस्तक पढ़ो। त्वं पुस्तकं पठ । हम सब भारत के नागरिक हैं । वयं भारतस्य नागरिकाः सन्ति । देशभक्त निर्भीक होते हैं । देशभक्ताः निर्भीकाः भवन्ति । सिकन्दर कौन था ? अलक्षेन्द्रः कः आसीत् ? राम स्वभाव से दयालु हैं । रामः स्वभावेन दयालुः अस्ति । वृक्ष से फल गिरते हैं ।। वृक्षात् फलानि पतन्ति शिष्य ने गुरु से प्रश्न किया । शिष्यः गुरुं प्रश्नम् अपृच्छ्त् । मैं प्रतिदिन स्नान करता हूँ । अहं प्रतिदिनम् स्नानं कुर्यामि । मैं कल दिल्ली जाऊँगा । अहं श्वः दिल्लीनगरं गमिष्यामि । प्रयाग में गंगायमुना का संगम है । प्रयागे गंगायमुनयोः संगमः अस्ति । वाराणसी की पत्थर की मूर्तियाँ प्रसिद्ध हैं । वाराणस्याः प्रस्तरमूर्त्तयः प्रसिद्धाः ।"" |